महिलाओं पर प्रवासन का प्रभाव और पितृसत्ता

परिचय

प्रवास यानी लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर रहन-सहन और काम के लिए जाना आज के समय में एक सामान्य सामाजिक-आर्थिक प्रक्रिया बन चुका है। खासकर भारत जैसे देश में, जहाँ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच विकास का असंतुलन है, वहां प्रवासन की प्रक्रिया तेजी से बढ़ी है। लेकिन प्रवास का प्रभाव महिलाओं पर बहुत जटिल और गहरा होता है क्योंकि यह सामाजिक संरचनाओं, पारिवारिक संबंधों और पितृसत्तात्मक संस्थाओं को सीधे प्रभावित करता है।

बिहार में प्रवासन के ऐतिहासिक कारण

ऐतिहासिक घटनाओं ने बिहार में प्रवासन के पैटर्न को गहराई से प्रभावित किया है। मुग़ल काल में पश्चिमी बिहार की योद्धा जातियों और समुदायों को मुग़ल सेना में भर्ती किया गया। यह सैन्य भर्ती से जुड़ा प्रवासन का एक प्रारंभिक रूप था।

ब्रिटिश शासन के दौरान पश्चिमी भारत में सड़कों, रेलमार्गों और सिंचाई जैसी ढाँचागत सुविधाओं के विकास ने रोज़गार के नए अवसर पैदा किए। इससे बिहार के लोग बड़ी संख्या में कृषि मज़दूरी के लिए उन क्षेत्रों की ओर गए, जहाँ हरित क्रांति (ग्रीन रेवोल्यूशन) के कारण श्रम की माँग बढ़ी, विशेषकर पंजाब और हरियाणा में।

औपनिवेशिक काल में पूर्व की ओर भी प्रवासन बढ़ा, खासकर बंगाल और असम की तरफ़। इसका कारण जमींदारी व्यवस्था जैसे भूमि प्रबंधन तंत्र थे, जिन्होंने किसानों के अधिकारों को कमजोर किया और मजदूरी में असमानताएँ पैदा कीं। इससे भूमिहीन मज़दूर आजीविका की तलाश में मौसमी प्रवासन करने लगे।

स्वतंत्रता के बाद पश्चिम की ओर श्रम प्रवासन और तेज़ हुआ। पहले चरण में यह मुख्यतः पंजाब की ओर था, जहाँ हरित क्रांति से श्रमिकों की भारी आवश्यकता थी। बाद में यह प्रवासन दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरी केंद्रों की ओर बढ़ा, जहाँ आर्थिक अवसर मिलने लगे। यह प्रवृत्ति बिहार की आर्थिक पिछड़ेपन और रोज़गार की कमी की प्रतिक्रिया को दर्शाती है।

1. प्रवासन और महिलाओं की भूमिका

  • भारत में अधिकांश प्रवासन पुरुष-प्रधान होता है, जहां पुरुष बेहतर रोजगार की तलाश में शहरों और अन्य राज्यों की ओर जाते हैं।
  • इस प्रक्रिया में महिलाएं अधिकतर गाँवों में रह जाती हैं और घर, खेत, परिवार और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाती हैं।
  • कई बार महिलाएं पति या परिवार के अन्य सदस्यों के साथ भी प्रवास करती हैं, लेकिन उनकी स्वतंत्र गतिशीलता सीमित रहती है।

2. प्रवासन में पितृसत्तात्मक पहलू

  • समाज में पुरुषों के प्रभुत्व और महिलाओं की पारंपरिक भूमिकाओं को देखते हुए, प्रवासन व्यवहार में भी पितृसत्ता के गहरे प्रभाव देखे जाते हैं।
  • पुरुषों के पलायन से महिलाओं पर घरेलू और सामाजिक जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ जाता है, पर सामाजिक और पारिवारिक निर्णयों में उनकी भागीदारी कई बार सीमित रहती है।
  • प्रवासन प्रक्रिया में महिलाओं को अक्सर “सहायक” या “निर्भर” माना जाता है, जिससे उनकी आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता कम होती है।
  • तकनीकी उपकरण जैसे मोबाइल फोन ने महिलाओं को संवाद का साधन तो दिया है, लेकिन यह पितृसत्तात्मक नियंत्रण और संवाद में बाधाएँ पूरी तरह समाप्त नहीं कर पाया।

3. महिलाओं पर प्रवासन के प्रभाव

जब पुरुष सदस्य प्रवास पर चले जाते हैं तो महिलाओं को घरेलू संसाधनों के प्रबंधन में कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इनमें बढ़ा हुआ कार्यभार, प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियाँ, सामाजिक अवरोध और सीमित निर्णय लेने की शक्ति शामिल हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं को मज़दूर रखने, धन का प्रबंधन करने और कृषि से जुड़े संसाधनों पर निगरानी रखने जैसी भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं, जिन्हें तकनीकी ज्ञान की कमी और सामाजिक पाबंदियों के कारण निभाना उनके लिए कठिन हो जाता है।

सामाजिक अवरोध विशेष रूप से उच्च जाति (forward castes) की महिलाओं के लिए अधिक स्पष्ट होते हैं। उन्हें मज़दूर रखने में सामाजिक वर्जनाओं और मज़दूरों के साथ अच्छे संबंध न होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वहीं, निम्न जाति या कमजोर वर्गों की महिलाएँ अक्सर संसाधनों की कमी और आर्थिक तंगी से जूझती हैं, जिससे प्रबंधन और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

सहायता उपायों के संदर्भ में, अध्ययन यह बताता है कि महिलाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है, जिससे वे वित्तीय प्रबंधन, तकनीक के उपयोग और विपणन कौशल (marketing skills) में दक्ष हो सकें। ऐसे कार्यक्रम महिलाओं को घरेलू संसाधनों को बेहतर ढंग से सँभालने, सूझ-बूझ से निर्णय लेने और पुरुष सदस्यों या बाहरी सहायता पर निर्भरता कम करने में सक्षम बना सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, सामुदायिक सहयोग और पारिवारिक सहायता महिलाओं को सामाजिक अवरोधों से उबरने में मदद कर सकते हैं। साथ ही, ग्रामीण बुनियादी ढाँचे (infrastructure) को मज़बूत करने से कृषि संसाधनों और बाज़ारों तक उनकी पहुँच आसान होगी, जिससे उनके प्रबंधन संबंधी बोझ में कमी आएगी।

आर्थिक प्रभाव

  • प्रवासन से कई महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है, खासकर जो शहरों में काम करती हैं और अपनी आय से परिवार की मदद करती हैं।
  • लेकिन ज्यादातर महिलाएं असंगठित और कम वेतन वाली नौकरियों (जैसे घरेलू काम, निर्माण कार्य, ईंट भट्टे) तक सीमित रहती हैं।
  • अधिकांश प्रवासी महिलाएं अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी होती हैं, जिससे उन्हें बेहतर रोजगार के अवसर नहीं मिल पाते।

सामाजिक और पारिवारिक प्रभाव

  • पुरुषों की अनुपस्थिति में महिलाएं परिवार की मुख्य देखभालकर्ता बन जाती हैं, पर उनकी सामाजिक स्वायत्तता सीमित होती है।
  • वृद्धाश्रम, बच्चे, घर की जिम्मेदारियां महिलाओं के कंधों पर आ जाती हैं, जिससे उनके व्यक्तिगत विकास और सामाजिक भागीदारी में कमी आती है।
  • बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी प्राथमिकताओं के प्रति महिलाओं की चिंता बढ़ती है।

मानसिक और भावनात्मक प्रभाव

  • अकेलापन, सामाजिक अलगाव, और बढ़ती जिम्मेदारियों के कारण महिलाओं में तनाव और असहायता की भावना विकसित होती है।
  • हालांकि कई महिलाएं पारिवारिक निर्णयों में अधिक सक्रिय हो जाती हैं, लेकिन वे पूर्ण स्वायत्तता नहीं पा पातीं।

4. प्रवासन का बदलता स्वरूप और महिलाओं की सक्रियता

  • आज की महिलाएं पहले की तुलना में नौकरी, पढ़ाई और अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए अधिक स्वायत्त हो रही हैं।
  • खासकर युवा महिलाएं शहरों में शिक्षा और रोजगार के लिए अकेले भी जाती हैं, जिससे उन्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता मिलती है।
  • प्रवासन की प्रक्रिया में महिलाएं कई बार परंपरागत सीमाओं को तोड़कर नए सामाजिक और आर्थिक अवसर तलाशती हैं।
  • यह बदलाव पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना को अस्थिर कर सकता है, जिससे महिलाओं का सशक्तिकरण बढ़े।

5. प्रवासन में जेंडर आधारित चुनौतियाँ

असमान अवसर

  • महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन, कम सुरक्षा और अस्थिर रोजगार मिलता है।
  • महिला प्रवासी श्रमिकों को महानगरीय क्षेत्रों में आवास, स्वास्थ्य, और सामाजिक सुरक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जाता है।

सामाजिक भेदभाव

  • सामाजिक मान्यताएं जैसे शादी, परिवार की जिम्मेदारियां, और घरेलू कर्तव्य महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं।
  • महिलाओं के काम को अक्सर कम आंका जाता है, जिससे वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र होकर भी आयोजन और निर्णय में पिछड़ी रहती हैं।

6. नीति और सिफारिशें

  • प्रवासन की नीतियों में महिला मजदूरों की विशेष सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा शामिल होनी चाहिए।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा और कौशल विकास पर जोर देना जरूरी है ताकि महिलाएं बेहतर रोजगार पा सकें।
  • महिला प्रवासियों के लिए आवास, स्वास्थ्य और कानूनी सहायता के संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।
  • परिवार और समाज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं।
  • प्रवासन के दौरान महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा के लिए क़ानूनी प्रावधान मजबूत किए जाएं।

प्रवास एक ऐसा सामाजिक आर्थिक कारक है जो महिलाओं के जीवन को गहरा प्रभावित करता है। यह पितृसत्तात्मक सामाजिक ढांचों को चुनौती भी देता है और उन्हें पुनः पुष्टि भी करता है। जबकि पुरुषों के पलायन से महिलाओं पर जिम्मेदारियां बढ़ती हैं, वहीं वे अवसर भी पाती हैं अपनी आर्थिक, सामाजिक और व्यक्तिगत पहचान बनाने के। भविष्य में महिलाओं के सशक्तिकरण और समग्र सामाजिक विकास के लिए महिला प्रवासन के आयामों को समझना और उनकी सुरक्षा एवं अधिकारों को सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक होगा।

निवास स्थान बदलने के कारण (प्रवासियों के लिए):
जिन लोगों ने अपना पिछला सामान्य निवास स्थान छोड़ा, उनसे मुख्य कारण पूछा गया। इस सर्वेक्षण में निम्न कारण दिए गए थे –

  • रोज़गार/बेहतर रोज़गार की तलाश में
  • रोज़गार/काम के लिए (नौकरी करने, बेहतर नौकरी करने, व्यापार करने, काम की जगह के पास रहने या तबादले के कारण)
  • नौकरी छूटना/कारखाना बंद होना/रोज़गार के अवसर न होना
  • माता-पिता/परिवार के कमाने वाले सदस्य का प्रवास
  • पढ़ाई करने के लिए
  • विवाह के कारण
  • प्राकृतिक आपदा (सूखा, बाढ़, सुनामी आदि)
  • सामाजिक/राजनीतिक समस्याएँ (दंगे, आतंकवाद, राजनीतिक शरणार्थी, क़ानून-व्यवस्था की समस्या आदि)
  • विकास परियोजनाओं से विस्थापन
  • स्वास्थ्य से जुड़ी वजहें
  • अपना घर/फ्लैट लेने के कारण
  • मकान से जुड़ी समस्याएँ
  • सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) के बाद
  • अन्य कारण

बिहार से महिलाओं का पलायन


बिहार से महिलाओं का पलायन मुख्यतः विवाह के कारण होता है, जो पूरे भारत में महिला पलायन का प्रमुख कारण है। लेकिन, बिहार में विवाह के कारण होने वाला पलायन राष्ट्रीय औसत से अपेक्षाकृत कम है। विवाह के अलावा, आर्थिक कारण भी महिलाओं के पलायन को प्रभावित करते हैं, विशेषकर काम, रोज़गार और व्यवसाय के उद्देश्य से।

आँकड़े बताते हैं कि बिहार से रोज़गार के कारण पलायन करने वाली महिलाओं का अनुपात पूरे भारत के औसत से अधिक है, जो यह दर्शाता है कि आर्थिक मजबूरी भी एक बड़ा कारण है। साथ ही, महिलाएँ बेहतर रोज़गार और जीविका के अवसरों के लिए शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करती हैं, हालाँकि उनका पलायन प्रायः सामाजिक और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों, विशेषकर विवाह, से भी प्रभावित होता है।

यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि जहाँ विवाह एक प्रमुख कारण बना हुआ है, वहीं महिलाओं का आर्थिक पलायन भी महत्वपूर्ण है। इसलिए उनके पलायन को सामाजिक और आर्थिक—दोनों दृष्टियों से समझना ज़रूरी है।

ग्रामीण बिहार में पुरुष प्रवासन का महिलाओं के जीवन पर प्रभाव

पुरुषों के प्रवासन का ग्रामीण बिहार की महिलाओं के दैनिक जीवन और निर्णय लेने की क्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके कई पहलू हैं:

  1. गृहस्थी के निर्णयों में बढ़ी भागीदारी: पति की अनुपस्थिति में महिलाएँ घरेलू कामकाज, आर्थिक फैसले और बच्चों की पढ़ाई से जुड़े निर्णय लेने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाती हैं।
  2. आय और पैसों का प्रबंधन: महिलाएँ प्रायः प्रवासी पुरुषों द्वारा भेजे गए पैसों का उपयोग करती हैं, घरेलू खर्चों का बजट बनाती हैं और कई बार पैसों के इस्तेमाल पर नियंत्रण रखती हैं।
  3. स्वतंत्र निर्णय लेना: महिलाएँ रोज़मर्रा की चीज़ों जैसे सब्ज़ी या कपड़े ख़रीदने के फैसले खुद लेने लगी हैं। कई बार वे बड़े निर्णयों, जैसे विवाह की व्यवस्था, में भी शामिल होती हैं।
  4. प्रवासी सदस्यों से संवाद: मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल से महिलाएँ अपने पति या रिश्तेदारों से आसानी से संपर्क कर पाती हैं और घर से जुड़े मुद्दों पर परामर्श ले सकती हैं।
  5. कृषि और आर्थिक कार्यों की ज़िम्मेदारी: पुरुषों के प्रवास पर जाने से महिलाएँ खेती और आय बढ़ाने वाले अन्य कामों में सक्रिय रूप से भाग लेने लगती हैं।
  6. आत्मनिर्भरता और ज़िम्मेदारी में वृद्धि: खासकर एकल (न्यूक्लियर) परिवारों में प्रवासन से महिलाओं की स्वतंत्रता और ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है। वे वे कार्य भी करने लगती हैं, जो पारंपरिक रूप से पुरुषों का क्षेत्र माने जाते थे।
  7. पितृसत्तात्मक ढाँचे में बदलाव: हालाँकि परिवर्तन दिखता है, फिर भी कई घरों में बुज़ुर्ग या ससुराल पक्ष के लोग महत्वपूर्ण निर्णयों में दखल देते हैं, जिससे पितृसत्तात्मक व्यवस्था बनी रहती है।
  8. आवागमन की स्वतंत्रता: मोबाइल संचार और बदलते पारिवारिक हालात के कारण महिलाओं की गाँव के भीतर और बाहर आने-जाने की स्वतंत्रता बढ़ी है।

पुरुष प्रवासन से महिलाओं की घरेलू और आर्थिक मामलों में भागीदारी बढ़ती है और उनका सशक्तिकरण होता है। फिर भी सामाजिक और पारंपरिक मान्यताएँ अब भी उनके निर्णय लेने की सीमा तय करती हैं।

पुरुषों के प्रवास का महिलाओं पर प्रभाव

भूमिका

बिहार और अन्य राज्यों के ग्रामीण इलाकों में पुरुष प्रवासन एक सामान्य सामाजिक-आर्थिक प्रक्रिया बन चुकी है। रोज़गार और बेहतर अवसरों की तलाश में पुरुषों के बाहर जाने से गाँवों की सामाजिक संरचना और पारिवारिक जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिलते हैं। विशेषकर महिलाओं की भूमिका और ज़िम्मेदारियों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है।

मुख्य भाग

  1. पुरुषों के कार्यों का निर्वहन:
    जब पुरुष बाहर चले जाते हैं, तब महिलाएँ वे कार्य संभालने लगती हैं, जिन्हें परंपरागत रूप से पुरुषों की ज़िम्मेदारी माना जाता था। इनमें घरेलू निर्णय लेना, पैसों का प्रबंधन और कृषि से जुड़े कार्य शामिल हैं।
  2. कृषि गतिविधियों में भागीदारी:
    प्रवासन के कारण खेत प्रबंधन और पशुपालन जैसी गतिविधियाँ महिलाओं की ज़िम्मेदारी बन जाती हैं। महिलाएँ खेती-बाड़ी, फसल प्रबंधन और पशुओं की देखभाल में अधिक सक्रिय हो जाती हैं।
  3. घरेलू निर्णयों में भागीदारी:
    प्रवासन से महिलाएँ परिवार के छोटे-बड़े निर्णय लेने में अधिक शामिल हो गई हैं। हालाँकि, वे कई बार मोबाइल फ़ोन के माध्यम से अपने पतियों या परिवार के अन्य सदस्यों से परामर्श करती हैं, फिर भी निर्णय लेने में उनकी भूमिका पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है।
  4. आर्थिक प्रबंधन:
    प्रवासी पुरुषों द्वारा भेजे गए पैसों (रेमिटेंस) का प्रबंधन भी महिलाओं के हाथ में आ जाता है। वे घरेलू खर्च का बजट बनाती हैं और आय-व्यय से जुड़े फैसले करती हैं।

कुल मिलाकर, पुरुष प्रवासन ने ग्रामीण समाज में महिलाओं की भूमिका को बदल दिया है। महिलाएँ अब केवल घरेलू कामकाज तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि कृषि, आर्थिक प्रबंधन और निर्णय लेने में भी उनकी भागीदारी बढ़ी है। यह बदलाव महिलाओं की सामाजिक स्थिति और आत्मनिर्भरता को मज़बूत करता है, हालाँकि कई बार यह ज़िम्मेदारी उनके लिए अतिरिक्त बोझ भी साबित होती है। फिर भी, प्रवासन ने ग्रामीण समाज में महिलाओं की सक्रियता और सशक्तिकरण की दिशा में एक नया अध्याय खोला है।

यह लेख “No One Knows About Me: India’s ‘Left-Behind’ Women” (महिमा जैन द्वारा, 17 दिसंबर 2020, समस्तीपुर ज़िला, बिहार) भारत में पुरुष प्रवासन के कारण पीछे छूट जाने वाली महिलाओं की स्थिति पर केंद्रित है।

पुरुष प्रवासन के दौरान महिलाओं को घरेलू संसाधनों के प्रबंधन में कठिनाइयाँ

जब पुरुष सदस्य प्रवास पर चले जाते हैं तो महिलाओं को घरेलू संसाधनों के प्रबंधन में कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इनमें बढ़ा हुआ कार्यभार, प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियाँ, सामाजिक अवरोध और सीमित निर्णय लेने की शक्ति शामिल हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं को मज़दूर रखने, धन का प्रबंधन करने और कृषि से जुड़े संसाधनों पर निगरानी रखने जैसी भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं, जिन्हें तकनीकी ज्ञान की कमी और सामाजिक पाबंदियों के कारण निभाना उनके लिए कठिन हो जाता है।

सामाजिक अवरोध विशेष रूप से उच्च जाति (forward castes) की महिलाओं के लिए अधिक स्पष्ट होते हैं। उन्हें मज़दूर रखने में सामाजिक वर्जनाओं और मज़दूरों के साथ अच्छे संबंध न होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वहीं, निम्न जाति या कमजोर वर्गों की महिलाएँ अक्सर संसाधनों की कमी और आर्थिक तंगी से जूझती हैं, जिससे प्रबंधन और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

सहायता उपायों के संदर्भ में, अध्ययन यह बताता है कि महिलाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है, जिससे वे वित्तीय प्रबंधन, तकनीक के उपयोग और विपणन कौशल (marketing skills) में दक्ष हो सकें। ऐसे कार्यक्रम महिलाओं को घरेलू संसाधनों को बेहतर ढंग से सँभालने, सूझ-बूझ से निर्णय लेने और पुरुष सदस्यों या बाहरी सहायता पर निर्भरता कम करने में सक्षम बना सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, सामुदायिक सहयोग और पारिवारिक सहायता महिलाओं को सामाजिक अवरोधों से उबरने में मदद कर सकते हैं। साथ ही, ग्रामीण बुनियादी ढाँचे (infrastructure) को मज़बूत करने से कृषि संसाधनों और बाज़ारों तक उनकी पहुँच आसान होगी, जिससे उनके प्रबंधन संबंधी बोझ में कमी आएगी।

निष्कर्ष

बिहार और भारत के अन्य हिस्सों में पुरुष प्रवासन केवल आर्थिक घटना नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, पारिवारिक और लैंगिक (gendered) वास्तविकताओं को गहराई से प्रभावित करता है। पुरुषों के बाहर चले जाने से महिलाएँ घर और खेत की ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाती हैं, निर्णय लेने में अधिक सक्रिय होती हैं और कई बार आर्थिक प्रबंधन तक संभालती हैं। यह स्थिति उन्हें सशक्त भी करती है, परंतु सामाजिक अवरोध, तकनीकी ज्ञान की कमी, पितृसत्तात्मक ढाँचे और सीमित संसाधन उनके सामने बड़ी चुनौतियाँ पेश करते हैं।

इस परिप्रेक्ष्य में यह समझना ज़रूरी है कि प्रवासन महिलाओं के जीवन में दोहरा प्रभाव डालता है—एक ओर यह उनकी भूमिकाओं और स्वतंत्रता का विस्तार करता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें नए तनाव, अकेलेपन और अतिरिक्त बोझ से भी गुज़रना पड़ता है। इसलिए प्रवासन को केवल आर्थिक अवसर के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक-लैंगिक (socio-gendered) प्रक्रिया के रूप में देखना चाहिए।

महिलाओं को घरेलू और सामाजिक स्तर पर सशक्त बनाने के लिए ठोस नीतिगत पहलें आवश्यक हैं—जिनमें शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, सामाजिक सुरक्षा और ग्रामीण अवसंरचना का विकास शामिल हो। साथ ही, परिवार और समाज को महिलाओं की भागीदारी और नेतृत्व को स्वीकार करना होगा। तभी प्रवासन का यह जटिल अनुभव महिलाओं के लिए केवल संघर्ष का प्रतीक न रहकर उनके सशक्तिकरण और सामाजिक परिवर्तन का साधन बन सकेगा।

Author

  • Arya Singh is a Media Intern at Pravasi Setu Foundation. She recently completed her Master’s in Political Science and International Relations from the Central University of South Bihar. Arya is deeply interested in politics, global affairs, and how societies function. She is especially passionate about bringing inclusive and feminist perspectives into discussions on governance and policy.

    At PSF, she is excited to use her academic knowledge to support media and communication work. With a strong desire to learn and contribute, Arya looks forward to working with the team to raise awareness about migration and diaspora issues through research-based content and public engagement.

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