बिहार प्रवासन: संघर्ष, कारण और आगे की राह

बिहार में प्रवासन का इतिहास बहुत प्राचीन और विविधतापूर्ण है। प्रवासन केवल आज का सामाजिक-आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि सभ्यता की शुरुआत से ही मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। जीवन यापन के साधनों की तलाश, उपजाऊ भूमि, जल, वन, खनिज और व्यापार के अवसरों ने लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर आकर्षित किया। ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि बिहार क्षेत्र में सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक काल और महाजनपद काल के समय से ही लोग अपनी आजीविका, कृषि, पशुपालन, व्यापार, धार्मिक कारणों और बेहतर जीवन की तलाश में स्थानांतरित होते रहे हैं।

प्राचीन बिहार, विशेष तौर पर मगध, वैशाली और पाटलिपुत्र, उन क्षेत्रों में शामिल रहा है जहां विभिन्न समुदायों और राजवंशों का आगमन और बसावट हुई। यहां की भौगोलिक स्थिति—गंगा के उपजाऊ मैदान, हिमालय की तराई और झारखंड के खनिज क्षेत्र—ने प्रवासियों को सदैव आकर्षित किया। बुद्ध और महावीर जैसे महान व्यक्तित्व भी बिहार के इसी ऐतिहासिक प्रवासन और सांस्कृतिक समन्वय की देन हैं। कुल मिलाकर, बिहार में प्रवासन की शुरुआत केवल आर्थिक या भौतिक जरूरतों के कारण नहीं, बल्कि पहचान, अवसर, ज्ञान और संस्कृति की खोज में भी हुई है। यह प्रवासन न सिर्फ बिहार की ऐतिहासिक समृद्धि और विविधता का परिचायक है बल्कि आज भी बिहार की सामाजिक संरचना में गहराई से बसा हुआ है |

बिहार में प्रवासन का इतिहास

बिहार में प्रवासन (Migration) कई सालों से सामाजिक और आर्थिक जीवन का अहम हिस्सा रहा है। लाखों लोग अपने गांवों को छोड़कर शहरों या दूसरे देशों में काम करने जाते हैं। कोई खेतों से शहर के कारखानों में मजदूरी करने जाता है, तो कोई पढ़ाई या बेहतर नौकरी के लिए बाहर निकलता है। यह कहानी जरूरत, सपनों और संघर्ष — तीनों का मिश्रण है। प्रवासन ने जहां कई परिवारों को अच्छी आय और नया अनुभव दिया है, वहीं गांवों में खेतों के लिए मजदूरों की कमी और शहरों पर बोझ जैसी चुनौतियाँ भी बढ़ी हैं।

प्रवासन के मुख्य कारण

बिहार से प्रवासन कोई नई बात नहीं है। पहले लोग गैर-आर्थिक कारणों से भी जाते थे — जैसे बाढ़, सूखा, जातिगत बंधन, या बेहतर पढ़ाई की तलाश। लेकिन समय के साथ आर्थिक कारण सबसे बड़ा कारण बन गए। खेती से कम आमदनी, गांव में रोजगार की कमी और शहरों में बेहतर मजदूरी का लालच लोगों को बाहर जाने पर मजबूर करता है। यह प्रवासन देश के भीतर (दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में) और विदेशों (गल्फ देशों, नेपाल आदि) — दोनों जगह होता है। अंग्रेज़ों के समय तो बिहार से मजदूरों को गिरमिटिया मज़दूर के रूप में फिजी, मॉरीशस और सूरीनाम जैसे देशों में भी भेजा गया था।

एक सर्वे (मुजफ्फरपुर और पटना, 300 प्रवासियों पर) बताता है कि 26% लंबे समय के प्रवासी और 62% से ज़्यादा छोटे समय के प्रवासी सिर्फ़ बेहतर मजदूरी और आय के लिए बाहर गए। इसके अलावा गांव में गैर-खेती रोजगार की कमी, बाढ़-सूखे से खेती का नुकसान, छोटे-छोटे खेत, जातिगत तनाव और बेहतर जीवन की चाह भी बड़ी वजहें हैं। गांव में अच्छे स्कूल, अस्पताल और सड़क जैसी सुविधाओं की कमी प्रवासन को और बढ़ा देती है।[Socio and economic aspects of migration in bihar research by Kameshwar Prashad Singh, collage Nadawan]

लोग जहाँ जाते हैं, वहाँ पहुँचने के पीछे भी खास कारण होते हैं। ऐसे राज्य और शहर चुने जाते हैं जहाँ मजदूरी ज्यादा हो, सालभर काम मिले, और पहले से वहां अपने गांव या जाति के लोग मौजूद हों। आधे से ज्यादा प्रवासी रिश्तेदारों के जरिए काम पर पहुंचे। लगभग 66% ने बाहर रहकर नई कौशल (जैसे वेल्डिंग, मशीन चलाना) सीखी, जो वे भविष्य में अपने गांव में इस्तेमाल करना चाहते हैं।

प्रवासी समुदाय की सामाजिक संरचना

सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि 61% प्रवासी ओबीसी वर्ग से हैं, 22% अनुसूचित जाति से, और 16% ऊपरी जातियों से। 65% प्रवासी 20–30 साल के युवा हैं और 98% पुरुष हैं। शिक्षा का स्तर कम है — 80% की पढ़ाई मिडिल स्कूल तक है और सिर्फ 2% ने इंटर से आगे पढ़ाई की है। [NSS National sample survey organization 64th round Report no. 533]

प्रवासियों की असली कहानियाँ

इन आंकड़ों के पीछे असली कहानियाँ भी हैं। रवि (24, समस्तीपुर) कई साल बाढ़ से फसल खराब होने के बाद दिल्ली के कपड़ा कारखाने में काम करने लगा, और हर महीने ₹6,000 घर भेजता है। मीना (30, गया) अपने पति के साथ पंजाब में कटाई के मौसम में खेत में काम करती है और साल का बाकी समय गांव में बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल में बिताती है। इम्तियाज़ (22, अररिया) ने पटना में वेल्डिंग सीखी, फिर मुंबई चला गया, और अब अपना वर्कशॉप खोलने का सपना देख रहा है। [Case study qualitative interview: Socio and economic aspects of migration in bihar research by Kameshwar Prashad Singh, collage Nadawan]

बिहार पर प्रवासन का असर

प्रवासन का बिहार पर असर मिला-जुला है। एक ओर, घर भेजा गया पैसा (रेमिटेंस) परिवार की आमदनी बढ़ाता है, बच्चों की पढ़ाई के खर्च पूरे करता है और कभी-कभी छोटे व्यापार शुरू करने में मदद करता है। दूसरी ओर, खेती के सीजन में मजदूरों की कमी हो जाती है, पढ़े-लिखे युवा बाहर चले जाते हैं और संयुक्त परिवार टूटकर छोटे परिवार में बदलने लगते हैं।

जिन राज्यों में बिहारी प्रवासी काम करते हैं, वहाँ वे निर्माण, परिवहन, घरेलू काम और खेती में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन वहां उन्हें अक्सर झुग्गियों में रहना पड़ता है, असुरक्षित और असंगठित काम करना पड़ता है, न्यूनतम मजदूरी से कम कमाई होती है, और कभी-कभी भेदभाव का सामना करना पड़ता है। [The Print article “Why outward migration is higher among upper caste”]

सरकारी प्रयास और योजनाएँ

सरकार ने कई योजनाएँ चलाई हैं, जैसे — प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), बिहार स्किल डेवलपमेंट मिशन, प्रवासी मजदूर रजिस्ट्रेशन और मनरेगा के तहत गांव में काम के मौके। लेकिन अभी भी चुनौतियाँ हैं — जैसे सभी प्रवासियों तक योजनाओं की पहुँच, मजदूरी में समानता और गांव में स्थायी रोजगार का अभाव।

भविष्य में ज़रूरी है कि प्रवासन मजबूरी न होकर एक विकल्प बने। इसके लिए गांव में छोटे उद्योग, कृषि-आधारित फैक्ट्रियां, बेहतर सड़क-बिजली-पानी-स्कूल, श्रमिक अधिकारों का पालन, लौटने वाले प्रवासियों को व्यापार में प्रोत्साहन और बाढ़-सूखे से निपटने की मजबूत तैयारी करनी होगी।

बिहार का प्रवासन संघर्ष और हौसले की कहानी है। यह दिखाता है कि लोग कठिन हालात में भी अपनी ज़िंदगी बेहतर बनाने के लिए आगे बढ़ते हैं। लेकिन यह भी याद दिलाता है कि अगर गांवों में समान अवसर और सुविधाएं मिलें, तो यह प्रवासन मजबूरी नहीं बल्कि महत्वाकांक्षा का चुनाव बन सकता है।

बिहार से प्रमुख गंतव्य राज्यों की ओर पलायन

बिहार से अन्य राज्यों में पलायन हमेशा से बहुत अधिक रहा है। चूँकि इसका मुख्य कारण आर्थिक होता है, इसलिए यह जानना जरूरी है कि बिहार से लोग किन प्रमुख राज्यों में जा रहे हैं, जहाँ उन्हें बेहतर आर्थिक अवसर मिलते हैं। पुरुषों का पलायन अधिकतर रोज़गार या आर्थिक कारणों से होता है, जबकि महिलाओं का पलायन मुख्य रूप से विवाह के कारण होता है। इसलिए अगर पुरुष और महिलाओं का आंकड़ा मिलाकर देखा जाए, तो आर्थिक कारणों से जाने वाले प्रमुख राज्यों की सही तस्वीर नहीं मिलेगी।

इसलिए यहाँ प्रमुख गंतव्य राज्यों का विश्लेषण केवल पुरुष प्रवासियों के आधार पर किया गया है, साथ ही पुरुष और महिला दोनों को मिलाकर भी समग्र रुझान दिखाया गया है। यह विश्लेषण बिहार से अन्य राज्यों में जाने वाले सभी प्रवासियों के आंकड़ों पर आधारित है और बताता है कि वे किन-किन राज्यों में बसते हैं।

Distribution of Bihari Migrant Cohort (Male) across Indian States.

बिहार से पुरुष प्रवासी  बिहार से प्रवासी (ग्रामीण) %बिहार (शहरी) से प्रवासी %
महाराष्ट्र17.813.9
दिल्ली15.915.2
पश्चिम बंगाल13.013.3
पंजाब12.312.3
उतार प्रदेश10.210.2
गुजरात8.17.9
हरयाणा5.84.6
झारखंड4.06.2
असम3.33.9
अन्य10.810.6
कुल100.0100.0

Source: Calculated using Census 2011.

 Distribution of Bihari Migrant Cohort (Male and Female Combined) across Indian States. 

बिहार से आने वाले सभी प्रवासियों के लिए प्रमुख गंतव्य राज्य(ग्रामीण) %बिहार (शहरी) से प्रवासी %
महाराष्ट्र17.314.4
दिल्ली15.716.0
पश्चिम बंगाल12.913.4
पंजाब12.212.6
उतार प्रदेश9.810.2
गुजरात8.09.5
हरियाणा5.94.4
झारखंड4.25.9
असम3.23.0
अन्य9.612.5
कुल100.0100.0

Source: Calculated using Census 2011.

दिल्ली: 

1. काम के ज्यादा मौके और बड़ा मजदूर समूह: बिहार के लगभग 28% प्रवासी मजदूर दिल्ली आते हैं। यहां पहले से बसे हुए बिहारियों की अच्छी-खासी संख्या होने से नए मजदूरों को काम और रहने में आसानी होती है। 

2. निर्माण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार: दिल्ली में निर्माण, फैक्ट्री और शहरी सेवाओं में काम के अच्छे मौके हैं। यहां लगभग 22% बिहार प्रवासी निर्माण काम में और 20% उद्योग (फैक्ट्री) में लगे हुए हैं।

[State Consultative Meeting on Labour Migration from Bihar – Institute for Human Development (IHD) (PDF)]

महाराष्ट्र:

1. शहरों में अच्छी कमाई के अवसर: महाराष्ट्र में लगभग 9% बिहार प्रवासी रहते हैं, खासकर मुंबई, भीवंडी और पुणे में। यहां निर्माण, फैक्ट्री और शहरी कामों में रोजगार आसानी से मिलता है। 

2. ज्यादा मजदूरी: महाराष्ट्र, खासकर मुंबई में, मजदूरी बिहार से ज्यादा है। मुंबई की लगभग 43% आबादी प्रवासियों की है, जिनमें बड़ी संख्या बिहारियों की है।

 [An Exploratory Study on Pattern and Factors Influencing Out-Migration in North Bihar (Prasad Lal, 2021)]

पश्चिम बंगाल:

1. स्थानीय स्तर पर काम की कमी: पश्चिम बंगाल में खुद रोजगार और अच्छी मजदूरी की कमी है, जिससे यहां के लोग और दूसरे राज्यों के मजदूर, बेहतर कमाई के लिए यहां आते भी हैं और यहां से जाते भी हैं। 

2. बेहतर मजदूरी की तलाश: लोग उन जगहों की तरफ जाते हैं जहां मजदूरी पश्चिम बंगाल से ज्यादा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो सके। 

[Migration and Development in India: The Bihar Experience (Datta, Rodgers, IHD, 2024)]

निष्कर्ष

बिहार का प्रवासन केवल आँकड़ों की कहानी नहीं है, बल्कि यह लाखों सपनों, संघर्षों और उम्मीदों का दस्तावेज़ है। हर प्रवासी अपने साथ मेहनत, हुनर और बदलते हालात का अनुभव लेकर चलता है। यह प्रवासन जहाँ एक ओर परिवारों के लिए आर्थिक सहारा और नए अवसर लाता है, वहीं दूसरी ओर यह हमें याद दिलाता है कि विकास और अवसर की समान पहुँच ही स्थायी समाधान है। अगर बिहार के गाँवों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ, मज़बूत बुनियादी ढाँचा और स्थानीय रोजगार उपलब्ध हों, तो प्रवासन एक मजबूरी नहीं बल्कि एक स्वैच्छिक और सम्मानजनक विकल्प बन सकता है। आने वाले समय में, यह ज़रूरी है कि नीतियाँ केवल पलायन को कम करने पर नहीं, बल्कि उन परिस्थितियों को बदलने पर केंद्रित हों जो लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर करती हैं। तभी बिहार का भविष्य अपनी धरती पर ही उज्ज्वल होगा, और इसके लोग मजबूरी से नहीं, बल्कि अपनी इच्छा से दुनिया के किसी भी कोने में सफलता की कहानी लिखेंगे।

संदर्भ

2011 की जनगणना, भारत

जर्नल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (TISS) द्वारा प्रकाशित एक द्वि-वार्षिक पत्रिका।
(लेख: 2011 की जनगणना झलक — बिहार से बाह्य प्रवासन: प्रमुख कारण और गंतव्य)

भारतीय जनसंख्या अध्ययन संस्थान (IIPS)
(अनुसंधान और टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित लेख: बिहार के 50% से अधिक घर प्रवासन से प्रभावित)

समाचार पत्र लेख:

  • द हिंदू: “द बिहार माइग्रेंट वर्कर, ए स्किल्ला-चारिब्डिस मोमेंट”
  • द प्रिंट: “क्यों बिहार में उच्च जातियों के बीच बाह्य प्रवासन OBCs और EBCs की तुलना में अधिक है”
  • द इंडियन एक्सप्रेस: “7% से अधिक आबादी का रोजगार के लिए प्रवासन, क्यों ‘पलायन’ बिहार चुनाव का मुख्य मुद्दा है”

Author

  • Arya Singh is a Media Intern at Pravasi Setu Foundation. She recently completed her Master’s in Political Science and International Relations from the Central University of South Bihar. Arya is deeply interested in politics, global affairs, and how societies function. She is especially passionate about bringing inclusive and feminist perspectives into discussions on governance and policy.

    At PSF, she is excited to use her academic knowledge to support media and communication work. With a strong desire to learn and contribute, Arya looks forward to working with the team to raise awareness about migration and diaspora issues through research-based content and public engagement.

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