परिचय
किरण देसाई का पहला उपन्यास हुल्लड़बाज़ी इन द ग्वावा ऑर्चर्ड 1998 में प्रकाशित हुआ, जो अपनी मौलिकता, हास्य और भारतीय जीवन की झलकियों के लिए खूब सराहा गया। इस किताब के लिए उन्हें Betty Trask Award मिला। इसके बाद उन्होंने कई वर्षों तक अपने दूसरे उपन्यास पर काम किया। 2006 में प्रकाशित द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस ने उन्हें विश्व साहित्य में एक मजबूत पहचान दिलाई। यह उपन्यास प्रवास, पहचान, गरीबी और वैश्वीकरण जैसे विषयों पर गहराई से प्रकाश डालता है। इस पुस्तक के लिए उन्हें प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार और National Book Critics Circle Fiction Award मिला, और वह उस समय बुकर जीतने वाली सबसे युवा महिला बनीं।
उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, परंपराओं, और बदलते सामाजिक व आर्थिक परिवेश की झलक साफ दिखाई देती है। उन्होंने अपने लेखन अनुशासन को लेकर हमेशा गंभीरता दिखाई—वह रोज सुबह जल्दी उठकर लिखने की आदत रखती थीं। उनके पिता और परिवार ने भी उनके करियर में महत्वपूर्ण प्रेरणा दी, यहाँ तक कि उनके पिता ने भविष्यवाणी की थी कि एक दिन वह बुकर पुरस्कार जीतेंगी।
2013 में, किरण देसाई को Berlin Prize Fellowship से सम्मानित किया गया। 2015 में The Economic Times ने उन्हें “दुनिया की 20 सबसे प्रभावशाली भारतीय महिलाओं” में शामिल किया। लंबे समय से वह अपनी नई किताब पर काम कर रही हैं, और लगभग दो दशकों बाद उनका अगला उपन्यास The Loneliness of Sonia and Sunny 2025 में प्रकाशित होने वाला है।
इस तरह, किरण देसाई ने न केवल भारतीय साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई है, बल्कि अपनी मां की साहित्यिक विरासत को भी गर्व से आगे बढ़ाया है।
किरण देसाई का 19 साल बाद नया उपन्यास बुकर पुरस्कार 2025 की लंबी सूची में
भारतीय मूल की मशहूर लेखिका किरण देसाई का बहुप्रतीक्षित नया उपन्यास “द लोनलीनेस ऑफ सोनिया एंड सनी” 2025 के बुकर पुरस्कार की लंबी सूची में शामिल हुआ है। यह उनकी लगभग 20 साल बाद आई पहली किताब है। 2006 में “द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस” से बुकर जीतने के बाद यह पहली बार है कि उनका नाम इस प्रतिष्ठित सूची में आया है।
हैमिश हैमिल्टन द्वारा प्रकाशित यह 650 पन्नों का विस्तृत उपन्यास दो भारतीय नायिकाओं की समानांतर यात्राओं को दर्शाता है—एक न्यूयॉर्क में रह रही है, जबकि दूसरी विदेश से पढ़ाई पूरी कर भारत लौटी है। कहानी में निजी इतिहास, परिवार, पहचान और प्रवासन जैसे मुद्दों को गहराई से पिरोया गया है।
इस साल की 13 चयनित किताबों में यह सबसे लंबा उपन्यास है, जिसे 150 से अधिक प्रविष्टियों में से चुना गया है। पुस्तक 23 सितंबर 2025 को प्रकाशित होगी।
देसाई इस बार की सूची में शामिल होने वाली एकमात्र पूर्व बुकर विजेता हैं। अगर वे जीतती हैं, तो वे बुकर इतिहास में दो बार विजेता बनने वाली सिर्फ पाँचवीं लेखिका होंगी—पीटर कैरी, जे.एम. कोएट्ज़ी, मार्गरेट एटवुड और हिलेरी मेंटल की श्रेणी में।
कहानी की झलक
उपन्यास की शुरुआत एक ट्रेन यात्रा में सोनिया और सनी की संयोगवश मुलाकात से होती है। दोनों के दादा-दादी ने कभी उनका विवाह कराने की कोशिश की थी, जो असफल रही थी। सोनिया, जो अमेरिका से भारत लौटी हैं, एक उपन्यासकार के रूप में अपनी राह तलाश रही हैं, जबकि सनी न्यूयॉर्क में पत्रकार हैं और अपने जटिल पारिवारिक माहौल से दूरी बनाए रखते हैं। कहानी प्रवासन, वर्ग, पीढ़ीगत संघर्ष और वैश्वीकरण की भावनात्मक कीमत जैसे विषयों को छूती है।
निर्णायकों की प्रतिक्रिया
बुकर पुरस्कार 2025 के निर्णायक मंडल ने इसे “विशाल और गहन” बताते हुए कहा कि यह सिर्फ प्रेम कहानी नहीं, बल्कि भारतीयों के अपने देश को पुनः खोजने की यात्रा और विश्व साहित्य में भारतीय उपन्यास के स्थान पर गहन चिंतन है।
बुकर 2025: महत्वपूर्ण तिथियाँ
- शॉर्टलिस्ट: 17 सितंबर 2025
- विजेता की घोषणा: 11 नवंबर 2025, लंदन
- विजेता पुरस्कार राशि: £50,000 (लगभग ₹50 लाख)
- शॉर्टलिस्ट लेखकों को: £2,500 (लगभग ₹2.5 लाख)
किरण देसाई का साहित्यिक सफर उनके पहले उपन्यास “हुल्लाबालू इन द गुआवा ऑर्चर्ड” (1998) से शुरू हुआ था, जिसका 22 भाषाओं में अनुवाद हुआ। “द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस” ने 2006 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान और बुकर अवॉर्ड दिलाया।
2025 बुकर पुरस्कार लंबी सूची
बुकर पुरस्कार दुनिया का प्रमुख साहित्यिक सम्मान है, जो किसी एक उत्कृष्ट काल्पनिक (फ़िक्शन) रचना को दिया जाता है। यह पुरस्कार 1969 में ब्रिटेन में शुरू हुआ था। प्रारंभ में इसे केवल राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ) के लेखकों को दिया जाता था, लेकिन अब यह पूरी दुनिया के लिए खुला है — इसमें किसी भी मूल के लेखक भाग ले सकते हैं।
हर साल, हमारे निर्णायकों की राय में, अंग्रेज़ी में लिखी गई और ब्रिटेन व आयरलैंड में प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ और सतत प्रभावशाली फ़िक्शन रचना को यह सम्मान दिया जाता है। इस पुरस्कार की उत्पत्ति के बारे में और जानें यहाँ।
विजेता पुस्तक न केवल हमारे वर्तमान समय से जुड़ाव रखती है, बल्कि समय की कसौटी पर खड़ी उतरते हुए महान साहित्य की श्रेणी में शामिल हो जाती है।
पहला बुकर पुरस्कार 1969 में पी.एच. न्यूबी को उनके उपन्यास “समथिंग टू आंसर फॉर” के लिए दिया गया था। तब से लेकर अब तक, दुनिया के कई मशहूर और चर्चित लेखकों को यह पुरस्कार उनकी अद्वितीय फ़िक्शन रचनाओं के लिए मिल चुका है — जिनमें वी.एस. नायपॉल, आइरिस मर्डॉक, विलियम गोल्डिंग, मार्गरेट एटवुड, सलमान रुश्दी, बर्नाडिन एवरिस्टो और हिलेरी मेंटल जैसे नाम शामिल हैं।
वर्तमान में, विजेता लेखक को £50,000 (लगभग ₹50 लाख) और शॉर्टलिस्ट में शामिल प्रत्येक लेखक को £2,500 (लगभग ₹2.5 लाख) की राशि दी जाती है।

(Pic source: The Booker Prize)
- लव फॉर्म्स — क्लेयर एडम (फैबर)
- द साउथ — टैश ऑ (फोर्थ एस्टेट)
- यूनिवर्सैलिटी — नताशा ब्राउन (फैबर)
- वन बोट — जोनाथन बकले (फिट्ज़काराल्डो एडिशंस)
- फ्लैशलाइट — सुसान चोई (जोनाथन केप)
- द लोनलीनेस ऑफ सोनिया एंड सनी — किरण देसाई (हैमिश हैमिल्टन)
- ऑडिशन — केटी कितामुरा (फ़र्न प्रेस)
- द रेस्ट ऑफ अवर लाइव्स — बेन मार्कोविट्स (फैबर)
- द लैंड इन विंटर — एंड्रयू मिलर (सेप्टर)
- एंडलिंग — मारिया रेवा (विरागो)
- फ्लेश — डेविड स्ज़ाले (जोनाथन केप)
- सीस्क्रैपर — बेंजामिन वुड (वाइकिंग)
- मिसइंटरप्रिटेशन — लेडिया झोगा (डंट बुक्स ओरिजिनल्स)
जज मंडल
- रॉडी डॉयल (अध्यक्ष): डॉयल, जो पैनल की अध्यक्षता करने वाले पहले बुकर पुरस्कार विजेता हैं।
- अयोबामी अदेबायो
- सारा जेसिका पार्कर
- क्रिस पावर
- काइली रीड
“अनीता देसाई: परिवार की विरासत को संजोते हुए“
किरण और अनीता देसाई का योगदान
अनीता देसाई और किरण देसाई का भारतीय साहित्य में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अनीता देसाई अपनी रचनाओं में मानवीय भावनाओं, रिश्तों और भारतीय समाज के बदलते स्वरूप को गहराई से प्रस्तुत करती हैं। क्लियर लाइट ऑफ डे, इन कस्टडी और फास्टिंग, फीस्टिंग जैसी उनकी किताबें भारतीय संस्कृति और जीवन की बारीकियों को संवेदनशील अंदाज़ में चित्रित करती हैं, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है।
किरण देसाई ने अपनी मां की साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए भारतीय साहित्य को वैश्विक पहचान दिलाई। उनका पहला उपन्यास हुल्लड़बाज़ी इन द ग्वावा ऑर्चर्ड अपनी मौलिकता और हास्य के लिए प्रसिद्ध हुआ, जबकि द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस ने 2006 में बुकर पुरस्कार जीतकर भारतीय लेखन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई ऊंचाई दी।
दोनों लेखिकाओं ने अपनी अलग-अलग शैली और विषयों के माध्यम से साहित्य को समृद्ध किया है और भारत की साहित्यिक पहचान को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
किरण देसाई और डायस्पोरा का चित्रण – विस्तृत सारांश
किरण देसाई, मशहूर भारतीय मूल की लेखिका अनीता देसाई की बेटी, प्रवासी भारतीय लेखकों में एक महत्वपूर्ण नाम हैं। उनका उपन्यास The Inheritance of Loss भारतीय प्रवासियों के अनुभव, उनके संघर्ष और उनकी मानसिक स्थिति को गहराई से दर्शाता है। डायस्पोरा का मतलब होता है—अपने देश से दूर किसी और देश में बसना, लेकिन अपनी मूल संस्कृति और पहचान से जुड़ाव बनाए रखना।
इस उपन्यास में दो मुख्य किरदार हैं—
- बीजू – एक गरीब भारतीय लड़का जो अमेरिका में अवैध प्रवासी है।
- साई – एक अनाथ लड़की जो अपने दादा, रिटायर्ड जज, के साथ हिमालय के पहाड़ी शहर कालिम्पोंग में रहती है।
बीजू अमेरिका “अमेरिकन ड्रीम” के सपने के साथ आता है, लेकिन उसे वहां भाषा, संस्कृति, और नौकरी की अस्थिरता से जूझना पड़ता है। वह एक रेस्टोरेंट से दूसरे रेस्टोरेंट में काम बदलता है, भेदभाव और अकेलेपन का सामना करता है, और धीरे-धीरे अपने देश के लिए गहरी लालसा महसूस करने लगता है। उसका अनुभव बताता है कि प्रवासी जीवन केवल आर्थिक संघर्ष नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक थकान से भी भरा होता है।
दूसरी ओर, साई का जीवन भारत में होते हुए भी पश्चिमी प्रभाव से भरा है, क्योंकि उसके दादा ने इंग्लैंड में पढ़ाई की थी और वे अंग्रेजी संस्कृति से प्रभावित हैं। कहानी में उसके गणित शिक्षक ग्यान के साथ रिश्ते और ग्यान का एक उग्र नेपाली संगठन में शामिल होना, सांस्कृतिक और राजनीतिक टकराव को दर्शाता है।
किरण देसाई के लेखन में डायस्पोरा के कई महत्वपूर्ण पहलू उभरते हैं—
- अलगाव और अकेलापन – प्रवासी अपने नए देश में अजनबी महसूस करते हैं।
- पहचान का संकट (Identity Crisis) – नई जगह में घुलने की कोशिश करते हुए भी वे अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं।
- नॉस्टेल्जिया (Nostalgia) – अपने देश, अपनी भाषा और संस्कृति की याद उन्हें बार-बार खींचती है।
- संस्कृति का टकराव – पश्चिमी और पूर्वी सोच के बीच खींचतान।
- ग्लोबलाइजेशन का प्रभाव – उपन्यास दिखाता है कि कैसे पश्चिम अपने मूल्य थोपने की कोशिश करता है और भारत जैसे देश पश्चिमी दुनिया में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं।
बीजू का अनुभव यह सिखाता है कि प्रवासी जीवन में अक्सर उम्मीदें और हकीकत में बड़ा अंतर होता है। विदेश में रहते हुए भी दिल अपने देश में ही अटका रहता है, और कभी-कभी वापसी ही सही लगने लगती है।
किरण देसाई बिना किसी नैतिक निर्णय के, साधारण लोगों के संघर्ष, उनकी भावनाओं और सांस्कृतिक खींचतान को बहुत संवेदनशील तरीके से पेश करती हैं। उनकी कहानी में हास्य, व्यंग्य, और गहरी संवेदना का संतुलित मिश्रण है।
निष्कर्ष
लगभग दो दशकों बाद किरन देसाई की साहित्यिक दुनिया में वापसी केवल एक प्रकाशन घटना नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक क्षण है। The Loneliness of Sonia and Sunny उनकी पूर्व की साहित्यिक चमक को अपने साथ लिए हुए है और पहचान, प्रवासन और अपनापन जैसे विषयों की नई परतें खोलती है। Hullabaloo in the Guava Orchard के चुटीले आकर्षण से लेकर The Inheritance of Loss की गहरी संवेदनाओं तक, देसाई ने हमेशा ऐसी कहानियां रची हैं जो दिल और दिमाग दोनों को छूती हैं। 2025 बुकर पुरस्कार की लंबी सूची में उनका स्थान यह साबित करता है कि वे आज भी समकालीन साहित्य में सबसे अहम आवाज़ों में से एक हैं — जो महाद्वीपों, संस्कृतियों और पीढ़ियों के बीच सेतु का काम करती हैं। चाहे वे इस बार पुरस्कार जीतें या नहीं, उनका यह नया उपन्यास पहले से ही इस बात का प्रमाण है कि कहानियां समय और सीमाओं को लांघकर लोगों के जीवन को जोड़ सकती हैं।
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